सामने Poetry (page 29)

जीत कर बाज़ी-ए-उल्फ़त को भी हारा जाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

बज़्म में वो बैठता है जब भी आगे सामने

अब्दुल मन्नान समदी

दिल अपना याद-ए-यार से बेगाना तो नहीं

अब्दुल मलिक सोज़

मोहतात ओ होशियार तो बे-इंतिहा हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

गर्द-ए-फ़िराक़ ग़ाज़ा कश-ए-आइना न हो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

पहले तो हम छान आए ख़ाक सारे शहर की

अब्बास ताबिश

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ

अब्बास ताबिश

लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे

अातिश बहावलपुरी

क़ैद से पहले भी आज़ादी मिरी ख़तरे में थी

आसी उल्दनी

सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए

आसी रामनगरी

आँखों के सामने कोई मंज़र नया न था

आशुफ़्ता चंगेज़ी

टीपू की आवाज़

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

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