सन्नाटा Poetry (page 2)

भूली-बिसरी रात

तख़्त सिंह

जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है

ताबिश मेहदी

मिलेगा दर्द तो दरमाँ की आरज़ू होगी

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

सुरेन्द्र शजर

कोई शय है जो सनसनाती है

सुनील आफ़ताब

कोई शय है जो सनसनाती है

सुनील आफ़ताब

ठंडी है या गर्म हवा है

सुल्तान सुकून

हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो

सुल्तान सुकून

कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ

सुल्तान अख़्तर

दर-ब-दर की ख़ाक पेशानी पे मल कर आएगा

सुल्तान अख़्तर

जब तू मुझ से रूठ गया था

सुलेमान ख़ुमार

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत

शुजा ख़ावर

ज़िंदगानी का क्या करें साहब

शुबह तराज़

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे

शाज़ तमकनत

ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो

शौकत परदेसी

न कोई अपना ग़म है और न अब कोई ख़ुशी अपनी

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

सूरज धीरे धीरे पिघला फिर तारों में ढलने लगा

शमीम हनफ़ी

शाम के साहिल पे सूरज का सफ़ीना आ लगा

शमीम हनफ़ी

हिज्र का क़िस्सा बहुत लम्बा नहीं बस रात भर है

शमीम हनफ़ी

इक्का दुक्का शाज़-ओ-नादिर बाक़ी हैं

शमीम अब्बास

घर के दीवार-ओ-दर पे शाम ही से

शकील आज़मी

ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए

शकेब जलाली

कारोबार-ए-शौक़ में बस फ़ाएदा इतना हुआ

शहरयार

दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था

शहनवाज़ ज़ैदी

इक हुजूम-ए-गिर्या की हर नज़र तमाशाई

शाहिदा तबस्सुम

एक लम्हा

शाहिद माहुली

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

शाहिद फ़रीद

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