सन्नाटा Poetry (page 3)

किस क़दर है मुहीब सन्नाटा

शाहिद फ़रीद

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

रस्म ही शहर-ए-तमन्ना से वफ़ा की उठ जाए

सय्यद एहतिशाम हुसैन

पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली

सरवत हुसैन

आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई

सरफ़राज़ ख़ालिद

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं फिर से हो जाऊँगा तन्हा इक दिन

साक़ी फ़ारुक़ी

लब-ए-तनूर

सलमान अंसारी

गुफ़्तुगू तीर सी लगी दिल में

सलमान अख़्तर

अपनी आदत कि सब से सब कह दें

सलमान अख़्तर

ज़ुल्म है तख़्त ताज सन्नाटा

सलमान अख़्तर

एक तो दुनिया का कारोबार है

सलीम फ़राज़

शाम

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अब के क़िमार-ए-इश्क़ भी ठहरा एक हुनर दानाई का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

शोर दिन को नहीं सोने देता

सैफ़ुद्दीन सैफ़

क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल

सैफ़ुद्दीन सैफ़

अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को

सईद क़ैस

हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है

सईद क़ैस

इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में

सईद नक़वी

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

सबा जायसी

बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता

रियाज़ लतीफ़

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

रविश सिद्दीक़ी

सफ़र

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

हाँ अभी कुछ देर पहले शेर की गूँजी थी धाड़

रशीद अफ़रोज़

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है

रमेश कँवल

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