रस्म ही शहर-ए-तमन्ना से वफ़ा की उठ जाए

रस्म ही शहर-ए-तमन्ना से वफ़ा की उठ जाए

इस तरह तो न कोई अहल-ए-मोहब्बत को सताए

वादी-ए-दिल में कई रातों से सन्नाटा है

काश बिजली ही तिरे अब्र-ए-सितम से गिर जाए

अपनी ज़िल्लत की सलीब आप लिए फिरना है

ये बड़ा बोझ मोहब्बत के सिवा कौन उठाए

बर-सर-ए-जंग हैं अनवार से ज़ुल्मात के देव

चाँद रातों के अँधेरे में कहीं डूब न जाए

ये समझ लो कि रग-ए-जाँ में है ज़हराब-ए-जुनूँ

जब निगाह-ए-करम-ओ-लुत्फ़ से भी दिल दुख जाए

दश्त-ए-उम्मीद में जलता है मिरे ख़ूँ का चराग़

राह मंज़िल की कहो मेरे सिवा कौन दिखाए

बारिश-ए-संग-ए-मलामत है ख़िरद का पथराव

अपने सर से हो जिसे प्यार मिरे साथ न आए

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In Hindi By Famous Poet Sayyad Ehtisham Husain. is written by Sayyad Ehtisham Husain. Complete Poem in Hindi by Sayyad Ehtisham Husain. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.