रेगिस्तान Poetry (page 46)

ज़वाल-ए-जिस्म को देखो तो कुछ एहसास हो इस का

अब्दुल हमीद

कभी देखो तो मौजों का तड़पना कैसा लगता है

अब्दुल हमीद

हुस्न इक दरिया है सहरा भी हैं उस की राह में

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

इस तिलिस्म-ए-रोज़-ओ-शब से तो कभी निकलो ज़रा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

ज़िक्र हम से बे-तलब का क्या तलबगारी के दिन

अब्दुल अहद साज़

मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी

अब्दुल अहद साज़

इक ईमा इक इशारा मर रहा है

अब्दुल अहद साज़

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

अब्बास ताबिश

टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है

अब्बास ताबिश

खा के सूखी रोटियाँ पानी के साथ

अब्बास ताबिश

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ

अब्बास ताबिश

आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है

अब्बास ताबिश

हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम

अातिश बहावलपुरी

अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है

आसी रामनगरी

ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा

आसी फ़ाईकी

घर की हद में सहरा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी

पनाहें ढूँढ के कितनी ही रोज़ लाता है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घर की हद में सहरा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दूर तक फैला समुंदर मुझ पे साहिल हो गया

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

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