रेगिस्तान Poetry (page 45)

अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

आदिल मंसूरी

हाथ में आफ़्ताब पिघला कर

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है

अदीम हाशमी

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

अदीम हाशमी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला

अबु मोहम्मद सहर

बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं

अबु मोहम्मद सहर

ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा

आबरू शाह मुबारक

शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन

आबरू शाह मुबारक

ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए

अबरार आज़मी

धूप चमकी रात की तस्वीर पीली हो गई

अबरार आज़मी

जब से दरिया में है तुग़्यानी बहुत

आबिद वदूद

चाँद से अपनी यारी थी

आबिद मुनावरी

आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में

आबिद मलिक

वो जो हर राह के हर मोड़ पर मिल जाता है

आबिद आलमी

तुम ने जब घर में अंधेरों को बुला रक्खा है

आबिद आलमी

तुम ने जब घर में अँधेरों को बुला रक्खा है

आबिद आलमी

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

आबिद आलमी

किसी मक़ाम पे हम को भी रोकता कोई

आबिद आलमी

जो शख़्स तुझ को फ़रिश्ता दिखाई देता है

आबिद आलमी

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अगर तुम रोक दो इज़हार-ए-लाचारी करूँगा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अपनी ही ज़ात के सहरा में सुलगते हुए लोग

अब्दुर्रहीम नश्तर

दश्त-ए-अफ़्कार में सूखे हुए फूलों से मिले

अब्दुर्रहीम नश्तर

सू-ए-सहरा ही चलें शायद रहें महफ़ूज़ कुछ

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ग़म के हाथों मिरे दिल पर जो समाँ गुज़रा है

अब्दुल मजीद सालिक

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