अपनी ही ज़ात के सहरा में सुलगते हुए लोग
अपनी परछाईं से टकराए हय्यूलों से मिले
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
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सफ़ेद-पोश दरिंदों ने गुल खिलाए थे
दश्त-ए-अफ़्कार में सूखे हुए फूलों से मिले
मैं तेरी चाह में झूटा हवस में सच्चा हूँ
देख रहा था जाते जाते हसरत से
अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी
वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर
आवाज़ दे रहा है अकेला ख़ुदा मुझे
टूट कर देर तलक प्यार किया है मुझ को
वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
उस ने चलते चलते लफ़्ज़ों का ज़हराब