उस ने चलते चलते लफ़्ज़ों का ज़हराब
मेरे जज़्बों की प्याली में डाल दिया
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(819) Peoples Rate This
अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी
पत्थर ने पुकारा था मैं आवाज़ की धुन में
आवाज़ दे रहा है अकेला ख़ुदा मुझे
फिर इक नए सफ़र पे चला हूँ मकान से
वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर
इन काली सड़कों प अक्सर ध्यान आया
पंछियों के रू-ब-रू क्या ज़िक्र-ए-नादारी करूँ
दश्त-ए-अफ़्कार में सूखे हुए फूलों से मिले
देख रहा था जाते जाते हसरत से
वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा
अपनी ही ज़ात के सहरा में सुलगते हुए लोग
वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में