वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में
फ़रिश्ते लोरियाँ गाते हैं उस के कानों में
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मैं तेरी चाह में झूटा हवस में सच्चा हूँ
मैं भी तालाब का ठहरा हुआ पानी था कभी
वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा
फटे पुराने बदन से किसे ख़रीद सकूँ
पत्थर ने पुकारा था मैं आवाज़ की धुन में
उस ने चलते चलते लफ़्ज़ों का ज़हराब
सफ़ेद-पोश दरिंदों ने गुल खिलाए थे
देख रहा था जाते जाते हसरत से
आवाज़ दे रहा है अकेला ख़ुदा मुझे