वृक्षारोपण Poetry (page 18)

फ़िशार-ए-तीरह-शबी से सहर निकल आए

आमिर नज़र

तिरे ख़याल के जब शामियाने लगते हैं

अमीर हम्ज़ा साक़िब

वो इक लफ़्ज़ जो बे-सदा जाएगा

अमीर क़ज़लबाश

पाईं हर एक राह-गुज़र पर उदासियाँ

अमीर क़ज़लबाश

ख़ुद अपने साथ सफ़र में रहे तो अच्छा है

अमीर क़ज़लबाश

इन सराबों से गुज़रने दे मुझे

अमीर क़ज़लबाश

वस्ल की शब भी ख़फ़ा वो बुत-ए-मग़रूर रहा

अमीर मीनाई

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है

अमीर मीनाई

लख़्त लख़्त

अमीक़ हनफ़ी

ज़िंदगी-भर एक ही कार-ए-हुनर करते रहे

अंबरीन हसीब अंबर

कोई दीवार न दर बाक़ी है

अम्बर शमीम

शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई

अम्बर बहराईची

क्यूँ न हों शाद कि हम राहगुज़र में हैं अभी

अम्बर बहराईची

हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए

अम्बर बहराईची

सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी

आलोक मिश्रा

जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है

आलोक मिश्रा

दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था

आलोक मिश्रा

शिकवा

अल्लामा इक़बाल

नानक

अल्लामा इक़बाल

यार जब नैनों में आया हू-ब-हू

अलीमुल्लाह

अब भी रौशन हैं

अली सरदार जाफ़री

बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर

अली सरदार जाफ़री

ज़रा हटे तो वो मेहवर से टूट कर ही रहे

अली अकबर अब्बास

उस शजर के साए में बैठा हूँ मैं

अली अहमद जलीली

मुस्तहिक़ वो लज़्ज़त-ए-ग़म का नहीं

अली अहमद जलीली

लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे

अली अहमद जलीली

ये किस मुहिम पर चले थे हम जिस में रास्ते पुर-ख़तर न आए

अलीना इतरत

सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना

आलमताब तिश्ना

सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना

आलमताब तिश्ना

मुकाफ़ात

अख़्तर-उल-ईमान

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