वृक्षारोपण Poetry (page 3)
ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए
वामिक़ जौनपुरी
तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़
वलीउल्लाह मुहिब
कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है
वहीद अहमद
हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात
वहाब दानिश
हवा के वार पे अब वार करने वाला है
विकास शर्मा राज़
उस गली तक सड़क रही होगी
विजय शर्मा अर्श
शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा
विजय शर्मा अर्श
किसी सूखे हुए शजर सा हूँ
विजय शर्मा अर्श
जिस भी जगह देखी उस ने अपनी तस्वीर हटा ली थी
विजय शर्मा अर्श
धूप शजर को गीत सुनाए आती है
वसाफ़ बासित
कर्ब-ए-तन्हाई
वली मदनी
वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
उम्मीद फ़ाज़ली
इक ऐसा मरहला-ए-रह-गुज़र भी आता है
उम्मीद फ़ाज़ली
जब भी पेड़ों पे समर जागता है
उमर फ़रहत
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
उमर अंसारी
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
उमर अंसारी
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है
उमैर नजमी
ताइर-ए-ख़ुश-रंग को बे-बाल-ओ-पर देखेगा कौन
तुफ़ैल अहमद मदनी
था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी
तौसीफ़ तबस्सुम
मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ
तौसीफ़ तबस्सुम
बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत
तौसीफ़ तबस्सुम
परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी
तौक़ीर तक़ी
बहार दर्द भरा इक़्तिबास छोड़ गई
तौक़ीर अब्बास
वो रौशनी जो शफ़क़ का लिबास छोड़ गई
तौक़ीर अब्बास
ये कैसी सुब्ह हुई कैसा ये सवेरा है
तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी
अब ख़ाना-ब-दोशों का पता है न ख़बर है
तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी
थम थम के बारिशें अब जल्वा दिखा रही हैं
तासीर सिद्दीक़ी
दिल को क़रार मिलता है अक्सर चुभन के बा'द
तासीर सिद्दीक़ी
कोई है बाम पर देखा तो जाए
तारिक़ मतीन
सरसब्ज़ थे हुरूफ़ प लहजे में हब्स था
तारिक़ जामी
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