वृक्षारोपण Poetry (page 4)

लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है

तनवीर अहमद अल्वी

लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है

तनवीर अहमद अल्वी

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

ताज सईद

ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से

तैमूर हसन

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

जो शजर बे-लिबास रहते हैं

ताहिर फ़राज़

हर्फ़

ताहिर अज़ीम

अव्वल वही सैराब था सानी भी वही था

तफ़ज़ील अहमद

ये माना वो शजर सूखा बहुत है

ताबिश मेहदी

जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है

ताबिश मेहदी

ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता

सय्यद अमीन अशरफ़

वजूद को जिगर-ए-मो'तबर बनाते हैं

सय्यद अमीन अशरफ़

मलाल-ए-ग़ुंचा-ए-तर जाएगा कभी न कभी

सय्यद अमीन अशरफ़

ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है

सय्यद अमीन अशरफ़

हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला

सय्यद अमीन अशरफ़

अपने ख़्वाबों को इक दिन सजाते हुए

स्वप्निल तिवारी

उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ

सुरेन्द्र पंडित सोज़

सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था

सुल्तान अख़्तर

हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे

सुल्तान अख़्तर

न ढलती शाम न ठंडी सहर में रक्खा है

सुलेमान ख़ुमार

कुछ नहीं है तो ये अंदेशा ये डर कैसा है

सुलेमान ख़ुमार

आज भी हाथ पे है तेरे पसीने की तरी

सुलैमान अरीब

शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार

सूफ़ी तबस्सुम

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

सुभाष पाठक ज़िया

इक रौशनी का ज़हर था जो आँख भर गया

सोहन राही

वही सितारा जो बुझ गया हम-सफ़र था मेरा

सिराज मुनीर

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

ज़बान-ए-ख़ल्क़ को चुप आस्तीं को तर पा कर

सिद्दीक़ मुजीबी

जब ध्यान में वो चाँद सा पैकर उतर गया

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

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