वृक्षारोपण Poetry (page 6)
सहर ने साँस ली सूरज चमकने वाला था
शहज़ाद हुसैन साइल
जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो
शहज़ाद अहमद
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
शहरयार
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
शहरयार
तिलिस्म ख़त्म चलो आह-ए-बे-असर का हुआ
शहरयार
गुज़रे थे हुसैन इब्न-ए-अली रात इधर से
शहरयार
फ़न के शजर पर फल जो लगे हैं
शहूद आलम आफ़ाक़ी
उसे जब भी देखा बहुत ध्यान से
शाहिदा तबस्सुम
सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़े कमाल का था
शाहिदा हसन
जब घर ही जुदा जुदा रहेगा
शाहिदा हसन
हवा पे चल रहा है चाँद राह-वार की तरह
शाहिदा हसन
ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच
शाहिद ज़की
दूर सहरा में जहाँ धूप शजर रखती है
शाहिद लतीफ़
मैं इंतिहा-ए-यास में तन्हा खड़ा रहा
शाहिद कलीम
अंधेरे घर में चराग़ों से कुछ न काम लिया
शाहिद कलीम
रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
शाहिद कबीर
कहीं का ग़ुस्सा कहीं की घुटन उतारते हैं
शाहिद जमाल
मिसाल-ए-संग-ए-तपीदा जड़े हुए हैं कहीं
शाहीन मुफ़्ती
जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई
शहाब सफ़दर
इन बला की आँधियों में इक शजर बाक़ी रहे
शफ़ीक़ सलीमी
देख कर उस को मुझे धचका लगा
शफ़ीक़ सलीमी
बे-नाम दयारों का सफ़र कैसा लगा है
शफ़ीक़ सलीमी
अजीब रुत थी बरसती हुई घटाएँ थीं
शफ़ी अक़ील
सरों पे साया ग़ुबार-ए-सफ़र के जैसा है
शफ़क़ सुपुरी
गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना
शाद शाद नूही
शर्तें जो बंदगी में लगाना रवा हुआ
शाद लखनवी
सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं
शबनम शकील
मौसम के पास कोई ख़बर मो'तबर भी हो
शबनम शकील
अपनी मजबूरी को हम दीवार-ओ-दर कहने लगे
शबनम रूमानी
उसी के क़ुर्ब में रह कर हरी भरी हुई है
शबाना यूसुफ़
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