रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
मैं वो प्यासा हूँ जो सहराओं से पानी माँगे
तू वो ख़ुद-सर कि उलझ जाता है आईनों से
मैं वो सरकश कि जो तुझ से तिरा सानी माँगे
वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
जिस का काटा हुआ इंसान न पानी माँगे
अब्र तो अब्र शजर भी हैं हवा की ज़द में
किस से दम भर को कोई छाँव सुहानी माँगे
उड़ते पत्तों पे लपकती है यूँ डाली डाली
जैसे जाते हुए मौसम की निशानी माँगे
मैं वो भूला हुआ चेहरा हूँ कि आईना भी
मुझ से मेरी कोई पहचान पुरानी माँगे
ज़र्द मल्बूस में आती हैं बहारें 'शाहिद'
और तू रंग ख़िज़ाओं का भी धानी माँगे
(582) Peoples Rate This