आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
आप जब हैं तो ज़माने की ज़रूरत क्या है
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ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
क्या फ़र्ज़ है ये जिस्म के ज़िंदाँ में सज़ा दे
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
पुकारती है जो तुझ को तिरी सदा ही न हो
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
काँटों को पिला के ख़ून अपना
रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश