बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
Mohsin Naqvi
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Allama Iqbal
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शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ
इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
पुकारती है जो तुझ को तिरी सदा ही न हो
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के