ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी
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वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए