इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
गर्द-आलूद है आईने को धोया जाए
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बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
अंदर का सुकूत कह रहा है
मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है