पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
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रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
काँटों को पिला के ख़ून अपना
अंदर का सुकूत कह रहा है