सोच Poetry (page 1)

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

रंग के गहरे थे लेकिन दूर से अच्छे लगे

आज़ाद हुसैन आज़ाद

गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में

अमित सतपाल तनवर

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

ढोल वाला

बुशरा सईद

जवाँ होता बुढ़ापा

ममता तिवारी

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

नए आदमी का कंफ़ेशन

ग़ज़नफ़र

अंदेशा

फ़ैसल हाश्मी

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

असरार बड़ी देर में ये मुझ पे खुला है

ज़ुल्फ़िक़ार अहसन

नज़्म

ज़ुबैर रिज़वी

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

हर क़दम सैल-ए-हवादिस से बचाया है मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं

ज़ुबैर रिज़वी

दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है

ज़ुबैर अली ताबिश

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

कोई भी रस्ता बहुत सोच कर चुनूँगा मैं

ज़िया मज़कूर

ज़र्द पत्ते थे हमें और क्या कर जाना था

ज़िया ज़मीर

राहत-ए-वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर

ज़िया ज़मीर

इश्क़ जब तुझ से हुआ ज़ेहन के जुगनू जागे

ज़िया ज़मीर

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा

ज़ेहरा निगाह

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