सोच Poetry (page 2)

मैसेज

ज़ेहरा अलवी

इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता

ज़िशान मेहदी

दिन तिरी याद में ढल जाता है आँसू की तरह

ज़ेब ग़ौरी

ख़ाक-ज़ादे ख़ाक में या ख़ाक पर हैं आज भी

ज़मीर अतरौलवी

ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे

ज़मान कंजाही

रात का हुस्न भला कब वो समझता होगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़याल-ओ-ख़्वाब में डूबी दीवार-ओ-दर बनाती हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

ख़ामोशी ख़ुद अपनी सदा हो ये भी तो हो सकता है

ज़का सिद्दीक़ी

आप को क्यूँ नहीं लगा पत्थर

ज़हरा क़रार

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

उम्र-ए-अबद का मा-हसल इश्क़ का दौर-ए-ना-तमाम

ज़फ़र ताबाँ

उम्र-ए-अबद का मा-हसल इश्क़ का दौर-ए-ना-तमाम

ज़फ़र ताबाँ

जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा

ज़फ़र इक़बाल

दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में

ज़फ़र इक़बाल

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में

ज़फ़र गोरखपुरी

अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का

ज़फ़र गोरखपुरी

जब भी माज़ी के नज़ारे को नज़र जाएगी

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ख़बर

यूसुफ़ ज़फ़र

जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है

यूसुफ़ ज़फ़र

पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे

यूसुफ़ तक़ी

दर्द की लहर थी गुज़र भी गई

यशब तमन्ना

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

नज़रों में कहाँ उस की वो पहला सा रहा मैं

याक़ूब आमिर

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