दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
कोई बात निकल आती है काएनात के बारे में
एक दूसरे से कब सारे सय्यारे टकराते हैं
पुर-उम्मीद बहुत हूँ ऐसे हादसात के बारे में
कुछ सहता हूँ गुज़रते हुए ज़माने के लम्हों की सज़ा
कुछ कहता हूँ ना-मुम्किन से मुम्किनात के बारे में
सोते जागते उठते बैठते अपने ही झगड़े नहीं कम
और कई ज़ातों की उलझन एक ज़ात के बारे में
हैरत का एक अपना हुस्न भी है लरज़ा देने वाला
कोई परेशानी नहीं उस के नबातात के बारे में
ग़लत-सलत सब के अपने अपने अंदाज़े हैं वर्ना
कुछ भी नहीं कहा जा सकता किसी बात के बारे में
जब तक वो पहली तरजीह रहेगा सब ख़ैरियत है
मौसम को है तमाम आगही फूल पात के बारे में
क़तरे की पहचान ही दरिया में गुम हो जाना है कभी
कैसा जोश-ओ-ख़रोश है उस की मुलाक़ात के बारे में
दिल में कोई चीज़ चमकती बुझती रहती है जो 'ज़फ़र'
फ़िक्रमंद भी रहता हूँ मैं उसी धात के बारे में
(1240) Peoples Rate This