मामला Poetry (page 31)

दर्द

गुलनाज़ कौसर

वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा

गुलनार आफ़रीन

कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे

गुलाम जीलानी असग़र

न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

रोज़ रौशन रहें हालात ज़रूरी तो नहीं

गोपाल कृष्णा शफ़क़

काविश-ए-बे-सूद

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

मैं तिरे वास्ते आईना था

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

किसी की राह में आने की ये भी सूरत है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइने में अक्स खिलता है गुल-ए-हैरत नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

ग़ुलाम भीक नैरंग

मसाफ़त की गराँ हर एक साअ'त टूट जाती है

ग़ुफ़रान अमजद

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ज़वाल

ग़ज़नफ़र

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है

ग़ज़नफ़र

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