मामला Poetry (page 5)

उस की याद और दर्द की सौग़ात मेरे साथ थी

यहया ख़ालिद

इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ'नी से बेगाना हुआ

यगाना चंगेज़ी

काम दीवानों को शहरों से न बाज़ारों से

यगाना चंगेज़ी

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

अहवाल-ए-मज़ाहिब से ये साबित हुआ हम को

वज़ीर अली सबा लखनवी

नफ़्स नमरूद है क्या होना है

वज़ीर अली सबा लखनवी

महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी

वज़ीर अली सबा लखनवी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

तर्ग़ीब

वज़ीर आग़ा

रात भर इक सदा

वज़ीर आग़ा

चुटकी भर रौशनी

वज़ीर आग़ा

अंकबूत

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ

वज़ीर आग़ा

डर मौत का न ख़ौफ़ किसी देवता का था

वसीम मीनाई

हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है

वसीम मलिक

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

कोई सूरत नहीं मगर उस का

वसीम अकरम

इक अधूरी सी शाम बाक़ी है

वसीम अकरम

जो सोचते रहे वो कर गुज़रना चाहते हैं

वक़ार फ़ातमी

उम्र की रौ बदल गई शायद

वामिक़ जौनपुरी

इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है

वामिक़ जौनपुरी

फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी

वामिक़ जौनपुरी

कभी जब दास्तान-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिखता हूँ

वलीउल्लाह वली

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