केक Poetry (page 31)

जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है

अब्दुल अहद साज़

अज़दवाजी ज़िंदगी भी और तिजारत भी अदब भी

अब्दुल अहद साज़

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे

अब्बास ताबिश

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी

अब्बास ताबिश

दम-ए-सुख़न ही तबीअ'त लहू लहू की जाए

अब्बास ताबिश

चराग़-ए-सुब्ह जला कोई ना-शनासी में

अब्बास ताबिश

बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ

अब्बास ताबिश

थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई

आज़िम कोहली

आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

इतना ही बहुत है कि ये बारूद है मुझ में

आतिफ़ कमाल राना

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

आसी ग़ाज़ीपुरी

ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं

आस मोहम्मद मोहसिन

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते

आनिस मुईन

शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई

आल-ए-अहमद सूरूर

क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं

आफ़ाक़ सिद्दीक़ी

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