केक Poetry (page 29)

सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं

अहमद फ़राज़

ज़ेर-ए-लब

अहमद फ़राज़

मुहासरा

अहमद फ़राज़

भली सी एक शक्ल थी

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा

अहमद फ़राज़

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

अहमद फ़राज़

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

अहमद फ़राज़

शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ

अहमद फ़राज़

सब क़रीने उसी दिलदार के रख देते हैं

अहमद फ़राज़

क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा

अहमद फ़राज़

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे

अहमद फ़राज़

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अहमद फ़राज़

हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

अहमद फ़राज़

फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ

अहमद फ़राज़

चारागरों ने बाँध दिया मुझ को बख़्त से

अहमद फ़क़ीह

हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे

अहमद अता

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

क्या ख़बर थी राज़-ए-दिल अपना अयाँ हो जाएगा

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

गिर पड़ा तू आख़िरी ज़ीने को छू कर किस लिए

अफ़ज़ल मिनहास

ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो

अफ़ज़ल इलाहाबादी

वो आसमाँ के दरख़शिंदा राहियोँ जैसा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

नज़र के सामने रहना नज़र नहीं आना

आफ़ताब इक़बाल शमीम

इक चादर-ए-बोसीदा मैं दोश पे रखता हूँ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

ये जब्र भी है बहुत इख़्तियार करते हुए

आफ़ताब हुसैन

शब-ए-सियाह पे वा रौशनी का बाब तो हो

आफ़ताब हुसैन

फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता

अफ़सर इलाहाबादी

तुम को दावा है सुख़न-फ़हमी का

आदिल मंसूरी

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