केक Poetry (page 3)

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं

वलीउल्लाह मुहिब

कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात

वली उज़लत

ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के

वली उज़लत

जाती रहीं किधर वो मोहब्बत की बानियाँ

वली उज़लत

फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच

वली उज़लत

राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं

वली मोहम्मद वली

जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ

वली मोहम्मद वली

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न

वली मोहम्मद वली

यूँ भी जीने के बहाने निकले

वली आलम शाहीन

सफ़र है ख़त्म मगर बे-घरी न जाएगी

वली आलम शाहीन

कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही

वाली आसी

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

रात क़ातिल की गली हो जैसे

वजद चुगताई

'वहशत' सुख़न ओ लुत्फ़-ए-सुख़न और ही शय है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

या तिरी आरज़ू सा हो जाऊँ

विनीत आश्ना

हो के उस कूचे से आई तो सितम ढा गई क्या

उमर अंसारी

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

उमैर नजमी

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