तारीफ Poetry (page 2)

सच अगर पूछो तो ना-पैदा है यक-रू आश्ना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया

शाह नसीर

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया

शाद अज़ीमाबादी

हैं मनाज़िर सब बहम-पर्दा नज़र बाक़ी नहीं

शबनम शकील

वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता

सरवत ज़ेहरा

जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या

सरवत ज़ेहरा

ऐसी वैसी पे क़नाअत नहीं कर सकते हम

सरफ़राज़ ज़ाहिद

अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं

सलीम कौसर

प्यार का तोहफ़ा

साहिर लुधियानवी

मैं नहीं तो क्या

साहिर लुधियानवी

तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की

सफ़ी लखनवी

बाम पर आए कितनी शान से आज

रियाज़ ख़ैराबादी

जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे

रौनक़ टोंकवी

गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है

रौनक़ नईम

शर्तों पे अपनी खेलने वाले तो हैं वही

रऊफ़ ख़ैर

भले दिन आएँ तो आने वाले बुरे दिनों का ख़याल रखना

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है

रशीद लखनवी

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दोस्तो क्या है तकल्लुफ़ मुझे सर देने में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है

इम्दाद इमाम असर

हैं अश्क मिरी आँखों में क़ुल्ज़ुम से ज़्यादा

इमाम बख़्श नासिख़

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल

हसरत अज़ीमाबादी

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

क़ुदरत-ए-हक़ है सबाहत से तमाशा है वो रुख़

हैदर अली आतिश

है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का

हैदर अली आतिश

ख़ुद-ब-ख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है

हफ़ीज़ जौनपुरी

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