तमाशा Poetry (page 17)

न सह सकूँगा ग़म-ए-ज़ात गो अकेला मैं

अनवर शऊर

ऐसे देखा है कि देखा ही न हो

अनवर शऊर

कब ज़िया-बार तिरा चेहरा-ए-ज़ेबा होगा

अनवर मसूद

कब तलक यूँ धूप छाँव का तमाशा देखना

अनवर मसूद

मैं ख़ुद को मिस्मार कर के मलबा बना रहा हूँ

अंजुम सलीमी

हम से क्या ख़ाक के ज़र्रों ही से पूछा होता

अंजुम आज़मी

ज़माने भर का जो फ़ित्ना रहा था

अनजुम अब्बासी

रोज़ अख़बार में छप जाने से मिलता क्या है

अनजुम अब्बासी

म'अरका जब छिड़ गया तो क्या हुआ हम से सुनो

अनीस अशफ़ाक़

मुझे इल्ज़ाम न दे तर्क-ए-शकेबाई का

अंदलीब शादानी

मुझे दैर भी हो क्यूँ कर न हरम की तरह प्यारा

अमजद नजमी

समुंदर आसमान और मैं

अमजद इस्लाम अमजद

ख़ुद-सुपुर्दगी

अमजद इस्लाम अमजद

एक आज़ार हुई जाती है शोहरत हम को

अमजद इस्लाम अमजद

ढूँडती हैं जिसे मिरी आँखें

अमजद हैदराबादी

यूँ तो क्या क्या नज़र नहीं आता

अमजद हैदराबादी

इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का

अमीरुल्लाह तस्लीम

दरपेश तो हैं दीदा-ए-हैरान हज़ारों

आमिर नज़र

न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का

अमीर मीनाई

है नूर-ए-ख़ुदा भी यहाँ इरफ़ान-ए-ख़ुदा भी

अमीक़ हनफ़ी

सितारा-बार बन जाए नज़र ऐसा नहीं होता

अंबरीन हसीब अंबर

नशात-ए-उमीद

अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूप के साए

अल्ताफ़ गौहर

जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो

अल्लामा इक़बाल

गोरिस्तान-ए-शाही

अल्लामा इक़बाल

ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी

अल्लामा इक़बाल

मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया

अल्लामा इक़बाल

पीतम के देखने के तमाशा को जाएँ चल

अलीमुल्लाह

दर्द हर रंग से अतवार-ए-दुआ माँगे है

अली ज़हीर लखनवी

तीन शराबी

अली सरदार जाफ़री

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