तेज Poetry (page 14)

खड़ा था कौन कहाँ कुछ पता चला ही नहीं

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

अपने चेहरे पर कई चेहरे लिए

बदर जमाली

अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या

अज़रा परवीन

अँधेरा

अज़रा अब्बास

अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ

अज़्म शाकरी

याद

अज़ीज़ तमन्नाई

चाँदनी रात में

अज़ीज़ तमन्नाई

ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी

अज़ीज़ तमन्नाई

फ़स्ल-ए-राएगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ

अज़ीज़ हैदराबादी

नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है

अज़ीज़ हामिद मदनी

मुबहम से एक ख़्वाब की ताबीर का है शौक़

अज़ीज़ हामिद मदनी

वो साअ'त सूरत-ए-चक़माक़ जिस से लौ निकलती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है

अज़ीज़ हामिद मदनी

नक़्शे उसी के दिल में हैं अब तक खिंचे हुए

अज़ीज़ हामिद मदनी

हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना

अज़ीज़ हामिद मदनी

हवा आशुफ़्ता-तर रखती है हम आशुफ़्ता-हालों को

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए

अज़हर नवाज़

इस को कोई ग़म नहीं है जिस का घर पत्थर का है

अज़हर नैयर

तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं

अज़हर इनायती

क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा

अज़हर इनायती

ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई

अज़हर इनायती

हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई

अज़हर अब्बास

इस से पहले कि घर के पर्दों से

आज़र अस्करी

पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे

आज़ाद गुरदासपुरी

कोई न देखे गूँज हवा की

अय्यूब ख़ावर

मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था

अतीक़ुल्लाह

मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी

अतीक़ुल्लाह

कीसा-ए-दरवेश में जो भी है ज़र उतना ही है

अतीक़ुल्लाह

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