तोहमत Poetry (page 3)

अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा

गुलाम जीलानी असग़र

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

गुँध के मिट्टी जो कभी चाक पे आ जाती है

फ़रताश सय्यद

नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा

फ़ानी बदायुनी

वो जितने दूर हैं उतने ही मेरे पास भी हैं

फ़ैज़ुल हसन

जरस-ए-गुल की सदा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

कोई शय दिल को बहलाती नहीं है

बख़्श लाइलपूरी

मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से

अज़ीज़ नबील

इश्क़ से मैं डर चुका था डर चुका तो तुम मिले

औरंगज़ेब

साए की तरह कोई मिरे साथ लगा था

अासिफ़ जमाल

हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ

असग़र वेलोरी

वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से

आरज़ू लखनवी

पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ

आरज़ू लखनवी

रक़्स-ए-आशुफ़्ता-सरी की कोई तदबीर सही

अर्शी भोपाली

कभी जो उस की तमन्ना ज़रा बिफर जाए

अरशद कमाल

मस्ती-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम से वाबस्ता रही

अर्श सहबाई

वादा-ए-शाम-ए-फ़र्दा पे ऐ दिल मुझे गर यक़ीं ही न आए तो मैं क्या करूँ

अनवर मिर्ज़ापुरी

दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ

अनवर मसूद

मेरी बे-लिबासी तुम्हारा पहनावा नहीं

अंजुम सलीमी

कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है

अंजुम ख़याली

कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है

अंजुम ख़याली

ना-उमीदी हर्फ़-ए-तोहमत ही सही क्या कीजिए

अख़्तर सईद ख़ान

तुम से छुट कर ज़िंदगी का नक़्श-ए-पा मिलता नहीं

अख़्तर सईद ख़ान

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