नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है
पा-शिकस्ता भी तिरी राह में कहलाया हूँ
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हज़ार तर्क-ए-वफ़ा का ख़याल हो लेकिन
तुम्हारे साथ ही उस को भी डूब जाना है
मोहब्बतों की शिकस्तों का इक ख़राबा हूँ
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया
मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ
रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे
दिल के घाव जब आँखों में आते हैं
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं
जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ