हज़ार तर्क-ए-वफ़ा का ख़याल हो लेकिन
जो रू-ब-रू हों तो बढ़ कर गले लगा लेना
Wasi Shah
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Faiz Ahmad Faiz
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Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
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जितने थे तेरे महके हुए आँचलों के रंग
क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक
यादों का अजीब सिलसिला है
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
दिल के घाव जब आँखों में आते हैं
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं
तुम्हारे साथ ही उस को भी डूब जाना है