जितने थे तेरे महके हुए आँचलों के रंग
सब तितलियों ने और धनक ने उड़ा लिए
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ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं है वो रंग-ओ-बू भी नहीं
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
हज़ार तर्क-ए-वफ़ा का ख़याल हो लेकिन
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए
देख कर उस हसीन पैकर को
हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं
क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे
हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा