यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
इसी तरह से कटी ज़िंदगी तो क्या होगा
Parveen Shakir
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इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे
कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
ख़तरे का निशान
मंसूर से कम नहीं है वो भी
तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है
पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया