पुकारा जब मुझे तन्हाई ने तो याद आया
कि अपने साथ बहुत मुख़्तसर रहा हूँ मैं
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क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
ज़िंदगी में ऐसी कुछ तुग़्यानीयाँ आती रहीं
मोहब्बतों की शिकस्तों का इक ख़राबा हूँ
ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
दीवारें खड़ी हुई हैं लेकिन
हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव
देख कर उस हसीन पैकर को