मोहब्बतों की शिकस्तों का इक ख़राबा हूँ
ख़ुदारा मुझ को गिराओ कि मैं दोबारा बनूँ
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(760) Peoples Rate This
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है
जलते मौसम में कोई फ़ारिग़ नज़र आता नहीं
हम से इंसाँ की ख़जालत नहीं देखी जाती
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक
जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
दो घड़ी बैठे थे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं की छाँव में