याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
जैसे बोसीदा किताबें हों हवालों के लिए
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देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं
क्या अदू क्या दोस्त सब को भा गईं रुस्वाइयाँ
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे
नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है
दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं
अपने दरिया की प्यास
मंसूर से कम नहीं है वो भी
ख़तरे का निशान
यादों का अजीब सिलसिला है