दो दरिया भी जब आपस में मिलते हैं
दोनों अपनी अपनी प्यास बुझाते हैं
Gulzar
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(761) Peoples Rate This
वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं
वो रोज़-ओ-शब भी नहीं हैं वो रंग-ओ-बू भी नहीं
क्या ज़माना है ये क्या लोग हैं क्या दुनिया है
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
जलते मौसम में कोई फ़ारिग़ नज़र आता नहीं
ख़तरे का निशान
कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया
याद आएँगे ज़माने को मिसालों के लिए
देख कर उस हसीन पैकर को