तोहमत Poetry (page 1)

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

आरिज़ से तिरे सुब्ह की तोहमत न उठेगी

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

ज़हर-ए-ग़म दिल में समोने भी नहीं देता है

ज़फ़र अनवर

मुझ को ता-उम्र तड़पने की सज़ा ही देना

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

भीगी पलकें शौक़ का आलम वक़्त का धारा क्या नहीं देखा

यावर अब्बास

कभी जब दास्तान-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिखता हूँ

वलीउल्लाह वली

घर यार का हम से दूर पड़ा गई हम से राहत एक तरफ़

वली उज़लत

उस हिज्र पे तोहमत कि जिसे वस्ल की ज़िद हो

विपुल कुमार

मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा

उनवान चिश्ती

इश्क़ क्या शय है दोस्त क्या कहिए

तनवीर गौहर

तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ

ताबिश कानपुरी

बस्ती में कमी किस चीज़ की है पत्थर भी बहुत शीशे भी बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा

सुल्तान अख़्तर

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

सुहैल अख़्तर

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

सिराज लखनवी

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

सिराज औरंगाबादी

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा

शाज़ तमकनत

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

शाज़ तमकनत

वो दिन भी थे कि इन आँखों में इतनी हैरत थी

शारिक़ कैफ़ी

रूह को अपनी तह-ए-दाम नहीं कर सकता

शमीम रविश

आज मेरी शब-ए-फ़ुर्क़त की सहर आई है

शमीम जयपुरी

आज जीने की कुछ उम्मीद नज़र आई है

शमीम जयपुरी

सितम-नवाज़ी-ए-पैहम है इश्क़ की फ़ितरत

शकील बदायुनी

नज़र से क़ैद-ए-तअय्युन उठाई जाती है

शकील बदायुनी

लुत्फ़-ए-निगाह-ए-नाज़ की तोहमत उठाए कौन

शकील बदायुनी

ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ

शकील बदायुनी

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे

शकील बदायुनी

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