वहशत Poetry (page 29)

दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही

आग़ा अकबराबादी

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है

आग़ा अकबराबादी

एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर

आदिल रज़ा मंसूरी

गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन

ए जी जोश

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