वहशत Poetry (page 3)
तिरी वहशत की सरसर से उड़ा जूँ पात आँधी का
वली उज़लत
बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना
वली उज़लत
यूँ भी जीने के बहाने निकले
वली आलम शाहीन
हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है
वाली आसी
बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम
वाली आसी
लबालब कर दे ऐ साक़ी है ख़ाली मेरा पैमाना
वाजिद अली शाह अख़्तर
इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़
वाजिद अली शाह अख़्तर
दम-ए-विसाल ये हसरत रही रही न रही
वजीह सानी
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को
वहीद इलाहाबादी
परोमीथियस
वहीद अख़्तर
ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है
वहीद अख़्तर
जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला
वहीद अख़्तर
ख़ौफ़ नामा
वहीद अहमद
अंदरूँ नींद का इक ख़ाली मकाँ होता था
वसाफ़ बासित
आख़िरी तंबीह
उरूज ज़ेहरा ज़ैदी
हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे
उम्मीद फ़ाज़ली
आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली है
उम्मीद फ़ाज़ली
ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा
उमैर मंज़र
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ
उमैर मंज़र
कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी
तिलोकचंद महरूम
गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद
तौसीफ़ तबस्सुम
आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे
तौसीफ़ तबस्सुम
हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए
तसनीम आबिदी
बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर
तसनीम आबिदी
हुए थे भाग के पर्दे में तुम निहाँ क्यूँकर
मीर तस्कीन देहलवी
सिसकती मज़लूमियत के नाम
तारिक़ क़मर
जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात
तारिक़ क़मर
बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए
तारिक़ क़मर
ये वीरानी सी यूँही तो नहीं रहती है आँखों में
तारिक़ नईम
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