वहशत Poetry (page 5)

ज़ेब उस को ये आशोब-ए-गदाई नहीं देता

सय्यद अमीन अशरफ़

बे-लुत्फ़ है ये सोच कि सौदा नहीं रहा

सय्यद अमीन अशरफ़

बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता

सय्यद अमीन अशरफ़

अश्क आँखों में छुपा लेता हूँ मैं

सुरेन्द्र शजर

अपने ही टूटे हुए ख़्वाबों को दिल चुनता भी है

सुल्तान सब्र वानी

रक़्स करता है ब-अंदाज़-ए-जुनूँ दौड़ता है

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया

सुल्तान अख़्तर

फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा

सुल्तान अख़्तर

कुछ नहीं है तो ये अंदेशा ये डर कैसा है

सुलेमान ख़ुमार

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

सुहैल अख़्तर

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

दुनिया के कुछ न कुछ तो तलबगार से रहे

सुहैल अहमद ज़ैदी

ग़म से फ़ुर्सत नहीं कि तुझ से कहें

सुबहान असद

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ

सिराज औरंगाबादी

मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान

सिराज औरंगाबादी

मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद

सिराज औरंगाबादी

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

सिराज औरंगाबादी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

ना-ख़लफ़ मिज़ाज की मुसद्दक़ा तस्लीमात

सिदरा सहर इमरान

नाकाम मुज़ाकरात

सिदरा सहर इमरान

जागते दिन की गली में रात आँखें मल रही है

सिदरा सहर इमरान

अँधियारा

सिद्दीक़ कलीम

हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे

सिद्दीक़ शाहिद

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

सब का ही नाम लेते हैं इक तुझ को छोड़ कर

शुजा ख़ावर

दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा

शुजा ख़ावर

दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा

शुजा ख़ावर

रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

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