मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
मुसहफ़ हुस्न-ए-परी-रुख़्सार जिस कूँ याद है
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तिरे सुख़न में ऐ नासेह नहीं है कैफ़िय्यत
गुल-रुख़ों ने किए हैं सैर का ठाट
फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ
रोज़ा-दारान-ए-जुदाई कूँ ख़म-ए-अबरू-ए-यार
इश्क़ का नाम गरचे है मशहूर
यार गर्म-ए-मेहरबानी हो गया
मिरा दिल नहीं है मेरे हात तुम बिन
हवस की आँख सीं वो चेहरा-ए-रौशन न देखोगे
जब सीं लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
इस लब कूँ कब पसंद हैं रस्मी कटोरियाँ
मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा