जब सीं लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
अक़्ल के लश्कर में भागा भाग है
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दाम-ओ-क़फ़स न चाहिए दिल के शिकार कूँ
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं
हिरन सब हैं बराती और दिवाना बन का दूल्हा है
नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक
हिज्र की आग में अज़ाब में न दे
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
रोज़ा-दारान-ए-जुदाई कूँ ख़म-ए-अबरू-ए-यार
दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा
ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा