जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
वास्ते मेहमान ग़म के दिल है बीड़ा पान का
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हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
जाता है मिरा जान निपट प्यास लगी है
मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था
शोर है बस-कि तुझ मलाहत का
अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ