जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
फ़रियाद एक जी है क्या क्या ख़राबियों में
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जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया
मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
मत करो शम्अ को बदनाम जलाती वो नहीं
शोर है बस-कि तुझ मलाहत का
कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
क़ातिल ने अदा का किया जब वार उछल कर
जानाँ पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ
ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा
मेरे जिगर के दर्द का चारा कब आएगा