कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
क़ुर्बान है इस कुफ़्र पर ईमान हमारा
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जान जाता है अब तो आ जानी
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया
मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने
ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख
तिरी निगाह-ए-तलत्तुफ़ ने फ़ैज़ आम किया
ख़ाक हूँ ए'तिबार की सौगंद
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ
मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है