अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
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हाकिम-ए-इश्क़ ने जब अक़्ल की तक़्सीर सुनी
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
कौन कहता है जफ़ा करते हो तुम
ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल
पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं
सुना है जब सीं तेरे हुस्न का शोर
जो कुछ कि तुम सीं मुझे बोलना था बोल चुका
कचेहरी में चमन की हर तरफ़ फ़रियाद बुलबुल है