आँख उठाते ही मिरे हाथ सीं मुझ कूँ ले गए
ख़ूब उस्ताद हो तुम जान के ले जाने में
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सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर
पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा
था बहाना मुझे ज़ंजीर के हिल जाने का
मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल
है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का
हिरन सब हैं बराती और दिवाना बन का दूल्हा है
इश्क़ की जो लगन नहीं देखा
जब सीं लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ